औलाद की चाह 006

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आश्रम के पहले दिन दीक्षा.
1.1k words
4.33
287
00

Part 7 of the 286 part series

Updated 05/16/2024
Created 04/17/2021
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औलाद की चाह

CHAPTER 2 पहला दिन

दीक्षा

Update 1

"प्लीज़ एक मिनट रूको, अभी खोलती हूँ।"

मैंने साड़ी ऊपर करके जल्दी से पेटीकोट पहना और फिर साड़ी ठीक ठाक करके दरवाज़ा खोल दिया। दरवाज़े पर परिमल खड़ा था।

परिमल--मैडम, दीक्षा के लिए गुरुजी आपका इंतज़ार कर रहे हैं। समीर ने मुझे भेजा है आपको लाने के लिएl

परिमल नाटे कद का था, शायद 5" से कम ही होगा, उसकी आँखों का लेवल मेरी छाती तक था। इसलिए मैं इस बात का ध्यान रख रही थी की मेरी चूचियाँ ज़्यादा हिले डुले नही।

"ठीक है। मैं तैयार हूँ। लेकिन समीर ने कहा था कि दीक्षा से पहले नहाना पड़ेगा।"

परिमल--हाँ मैडम, दीक्षा से पहले स्नान करना पड़ता है । पर वह स्नान ख़ास क़िस्म की जड़ी बूटियों को पानी में मिलाकर करना पड़ता है। आप चलिए, वहीं गुरुजी के सामने स्नान होगा।

उसकी बात सुनकर मैं शॉक्ड हो गयी।

"क्या? गुरुजी के सामने स्नान? ये मैं कैसे कर सकती हूँ? क्या मैं छोटी बच्ची हूँ?"

परिमल--अरे नहीं मैडम। आप ग़लत समझ रही हैं। मेरे कहने का मतलब है गुरुजी ख़ास क़िस्म का जड़ी बूटी वाला मिश्रण बनाते हैं, आपके नहाने से पहले गुरुजी कुछ मंत्र पढ़ेंगे। दीक्षा वाले कमरे में एक बाथरूम है, आप वहाँ नहाओगी।

परिमल के समझाने से मैं शांत हुईl

परिमल--मैडम किसने कहा है कि आप छोटी बच्ची हो? कोई अँधा ही ऐसा कह सकता है।

फिर थोड़ा रुककर बोला, "लेकिन मैडम, अगर आप स्कूल गर्ल वाली ड्रेस पहन लो तो आप छोटी बच्ची की जैसी लगोगी, ये बात तो आप भी मानोगी।"

परिमल मुस्कुराया। मैं समझ गयी परिमल मुझसे मस्ती कर रहा है । लेकिन मुझे आश्चर्य हुआ की मुझे भी उसकी बात में मज़ा आ रहा था। स्कूल यूनिफॉर्म की स्कर्ट तो मेरे बड़े नितंबों को ढक भी नहीं पाएगी, लेकिन फिर भी परिमल मुझसे ऐसा मज़ाक कर रहा था। ना जाने क्यूँ पर उसकी ऐसी बातों से मेरे निपल और चूचियाँ कड़क हो गयीं, शायद ख़ुद को एक छोटी स्कूल ड्रेस में कल्पना करके, जो मुझे ठीक से फिट भी नहीं आती। परिमल के छोटे कद की वज़ह से उसकी आँखें मेरी कड़क हो चुकी चूचियों पर ही थी।

मैंने भी मज़ाक में जवाब दिया, "समीर ने कहा है कि आश्रम से मुझे साड़ी मिलेगी। अब तुम मेरे लिए कहीं स्कूल ड्रेस ना ले आओ l"

परिमल हंसते हुए बोला, "मैडम, आश्रम भी तो स्कूल जैसा ही है, तो स्कूल ड्रेस पहनने में हर्ज़ क्या है। लेकिन अगर आप पहन ना पाओ तो फिर मुझे बुरा भला मत कहना।"

पता नहीं मैं परिमल के साथ ये बेकार की बातचीत क्यों कर रही थी पर मुझे मज़ा आ रहा था। शायद उसके छोटे कद की वज़ह से मैं उससे मस्ती कर रही थी। उससे बातों में मैं ये भूल ही गयी थी की मैं आश्रम में आई क्यूँ हूँ। मैं यहाँ कोई पिकनिक मनाने नहीं आई थी, मुझे तो माँ बनने के लिए उपचार करवाना था। लेकिन पहले समीर के साथ और अब परिमल के साथ हुई बातचीत से मेरा ध्यान भटक गया था।

मुझे ये अहसास हुआ की ना सिर्फ़ मेरे निपल कड़क हो गये हैं बल्कि मेरा दिल भी तेज-तेज धड़क रहा था। शायद एक अनजाने मर्द के सामने बिना ब्रा के सिर्फ़ ब्लाउज पहने होने से एक अजीब रोमांच-सा हो रहा था।

फिर मैंने पूछा, "तुम्हारी बात सही है कि आश्रम भी एक स्कूल जैसा ही है, पर मैं स्कूल ड्रेस क्यूँ नहीं पहन सकती?"

इसका जो जवाब परिमल ने दिया वैसा कुछ किसी भी मर्द ने आजतक मेरे सामने नहीं कहा था।

परिमल--क्यूंकी स्कूल यूनिफॉर्म तो स्कूल गर्ल के ही साइज़ की होगी ना मैडम।

मेरे पूरे बदन पर नज़र डालते हुए परिमल ने जवाब दिया।

फिर बोला, "अगर मान लो मैं आपके लिए स्कूल ड्रेस ले आया, सफेद टॉप और स्कर्ट। मैं शर्त लगा सकता हूँ की आप इसे पहन नहीं पाओगी। अगर आपने स्कर्ट में पैर डाल भी लिए तो वह ऊपर को जाएगी नहीं क्यूंकी मैडम आपके नितंब बड़े-बड़े हैं और टॉप का तो आप एक भी बटन नहीं लगा पाओगी। अगर आप ब्रा नहीं पहनी हो तब भी नहीं, जैसे अभी हो। तभी तो मैंने कहा था मैडम, की अगर आप पहन ना पाओ तो मुझे बुरा भला मत कहना।"

उसकी बात से मुझे झटका लगा। इसको कैसे पता की मैंने ब्रा नहीं पहनी है। हे भगवान! लगता है पूरे आश्रम को ये बात मालूम है।

"उम्म्म............मैं नहीं मानती। स्कर्ट तो मैं पहन ही लूँगी, हो सकता है टॉप ना पहन पाऊँ। भगवान का शुक्र है कि आश्रम के ड्रेस कोड में स्कूल यूनिफॉर्म नहीं है।" मैं खी-खी कर हंसने लगी, परिमल भी मेरे साथ हंसने लगा।

परिमल की हिम्मत भी अब बढ़ती जा रही थी क्यूंकी वह देख रहा था कि मैं उसकी बातों का बुरा नहीं मान रही हूँ और उससे हँसी मज़ाक कर रही हूँ। ऐसी बेशर्मी मैंने पहले कभी नहीं दिखाई थी पर पता नहीं क्यूँ बौने परिमल के साथ मुझे मज़ा आ रहा था। इन बातों का मेरे बदन पर असर पड़ने लगा था। मेरी साँसे थोड़ी भारी हो चली थी।

मेरी चूचियाँ कड़क हो गयी थीं और मेरी चूत भी गीली हो गयी थी। अब सीधा खड़ा रहना भी मेरे लिए मुश्किल हो रहा था, इसलिए साड़ी ठीक करने के बहाने मैंने अपने नितंब दरवाज़े पर टिका दिए l

परिमल--मैडम, अभी हमको देर हो रही है। दीक्षा के बाद मैं आपको स्कूल ड्रेस लाकर दूँगा फिर आप पहन के देख लेना की मैं सही हूँ या आप।

परिमल मुझे दाना डाल रहा है कि मैं उसके सामने स्कूल ड्रेस पहन के दिखाऊँ, ये बात मैं समझ रही थी। पर इस बौने आदमी को टीज़ करने में मुझे भी मज़ा आ रहा था।

"सच में क्या? आश्रम में तुम्हारे पास स्कूल ड्रेस भी है? ऐसा कैसे?"

परिमल--मैडम, कुछ दिन पहले गुरुजी का एक भक्त अपनी बेटी के साथ आया था। लेकिन जाते समय वह एक पैकेट यहीं भूल गया जिसमे उसकी बेटी की स्कूल ड्रेस और कुछ कपड़े थे। वह पैकेट ऑफिस में ही रखा है। लेकिन अभी देर हो रही है मैडम, गुरुजी दीक्षा के लिए इंतज़ार कर रहे होंगे।

हमारी छेड़खानी कुछ ज़्यादा ही खिंच गयी थी । आश्रम में किसी लड़की की स्कूल यूनिफॉर्म होगी ये तो मैंने सोचा भी नहीं था। लेकिन बौने परिमल की मस्ती का मैंने भी पूरा मज़ा लिया था।

फिर मैं परिमल के साथ दीक्षा लेने चले गयी। दीक्षा वाले कमरे में बहुत सारे देवी देवताओं के चित्र लगे हुए थे। वह कमरा मेरे कमरे से थोड़ा बड़ा था। एक सिंहासन जैसा कुछ था जिसमें एक मूर्ति के ऊपर फूलमाला डाली हुई थी और सुगंधित अगरबत्तियाँ जल रही थीं।

उस कमरे में गुरुजी और समीर थे। परिमल मुझे अंदर पहुँचाके कमरे का दरवाज़ा बंद करके चला गया। उस कमरे में आने के बाद मैं बहुत नर्वस हो रही थी।

कहानी जारी रहेगी...

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