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Click hereराजमहल 16
राजकुमार वरुण की प्रतिज्ञा
फिर चंदन मृग वाटिका में तीनो मजे कर सम्भोग का आनद लेने लगे. वाटिका में वैसे सब सुख सुविधाएं थी परन्तु तीनो को पूर्ण एकांत मिले और कोई उन्हें तंग ना करे इसलिए वहां कोई सेवक, या सेविका नहीं थे, सब काम, युवराज, राजकुमार और राजकुमारी को खुद ही करना पड़ता था। तीनो सब काम मिल कर कर रहे थे और एक दूसरे को पूरा समय दे रहे थे और प्रसन्न थे।
फिर एक दिन राजकुमारी सीमा की माहवारी आ गयी, दर्द के कारण वह चिड़चिड़ी हो गयी। उसी दिन गर्मी भी बहुत थी और हवा भी नहीं चल रही थी ।
उस दिन राजकुमार वरुण चंदन मृग वाटिका में बैठा था कि उसे बड़े जोर की प्यास लगी। उसे सामने से राजकुमारी सीमा आती दिखाई दीं। उसने कहा, 'रानी, मुझे एक गिलास पानी दे दो।'
अब सीमा माहवारी के कारण चिड़चिड़ी थी और कहाँ तो राजमहल में इतने नौकर-चाकर होते हुए भी उसे यहाँ माहवारी में भी सब काम करना पड़ रहा था वह मन-ही-मन खीज उठीं।
राजकुमारी सीमा ने व्यंग्य भरे स्वर में कहा, 'तुम्हारा इतना ऊँचा दिमाग है तो जाओ, अपनी सेवा के लिए राजकुमारी मधुरिमा को रानी बना कर ले आओ।'
प्यासे और गर्मी से व्याकुल राजकुमार वरुण ने यह सुना तो उसका पारा एकदम चढ़ गया आखिर राजकुमारी सीमा उसकी पत्नी थी और वो उसे ऐसे कैसे कह सकती थी ।
राजकुमार वरुण बोला, 'जबतक मैं रानी मधुरिमा को नहीं ले आऊँगा, इस घर का अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगा।'
बात छोटी-सी थी, लेकिन उसने उग्र रूप धारण कर लिया। राजकुमारी मधुरिमा कोसों दूर रहती थी। वहाँ पहुँचना आसान न था। रास्ता बड़ा दूभर था। जंगल, पहाड़, नदी-नाले, समुद्र, जाने क्या रास्ते में पड़ते थे, किंतु राजकुमार वरुण तो संकल्प कर चुका था और वह पत्थर की लकीर के समान था।
उसने तत्काल अपने परम मित्र वजीर के लड़के अली और युवराज ज़ुबैर को बुलवाया और उन्हें सारी बात सुना कर घोड़ा तैयार करवाने को कहा। वजीर के लड़के अली और युवराज ने उसे बार-बार समझाया कि राजकुमारी मधुरिमा तक पहुँचना बहुत मुश्किल है।
राजकुमारी सीमा ने भी राजकुमार वरुण से माफ़ी मांगी पर राजकुमार वरुण अपने हठ पर अड़ा रहा। उसने कहा, 'चाहे कुछ भी हो जाए, बिना रानी मधुरिमा के मैं इस महल में पैर नहीं रक्खूँगा।'
आखिरकार फिर युवराज के सुझाव पर राजकुमार वरुण, अपने मित्र अली को अपने साथ ले जाने के लिए मान गया । फिर दो घोड़े तैयार किए गए, रास्ते के खाने-पीने के लिए सामान की व्यवस्था की गई और राजकुमार वरुण तथा वजीर का लड़का अली राजकुमारी मधुरिमा की खोज में निकल पड़े।
उन्होंने पता लगाया तो मालूम हुआ कि राक्जमारी मधुरिमा सुदूर मधुर द्वीप में रहती है, जहाँ पहुँचने के लिए सागर पार करना होता है। फिर रानी का महल चारों ओर से भयानक मायावी रक्षको से रक्षित है। उनकी किलेबंदी को तोड़ कर महल में प्रवेश पाना असंभव है ।
वजीर के लड़के अली ने एक बार फिर राजकुमार वरुण को समझाया कि वह अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ दे अपनी जान को जोखिम में न डाले, किंतु राजकुमार वरुण ने कहा, 'तीर एक बार तरकश से छूट जाता है तो वापस नहीं आता। मैं तो अपने वचन को पूरा करके ही रहूँगा।'
वजीर का लड़का अली चुप रह गया। दोनों अपने-अपने घोड़ों पर सवार हो कर रवाना हो गए। दोपहर को उन्होंने एक अमराई में डेरा डाला। खाना खाया, थोड़ी देर आराम किया, उसके बाद आगे बढ़ गए। चलते-चलते दिन ढलने लगा, गोधूलि की बेला आई। इसी समय उन्हें सामने एक बहुत बड़ा बाग दिखाई दिया।
राजकुमार वरुण ने कहा, 'आज की रात इस बाग में बिता कर कल तड़के आगे चल पड़ेंगे।'
बाग का फाटक खुला था और वहाँ कोई चौकीदार या रक्षक नहीं था। वजीर के लड़के अली ने उधर
निगाह डाल कर कहा, ' कुमार! मुझे तो यहाँ कोई खतरा दिखाई देता है। हम लोग यहाँ न रुक कर आगे और कहीं रुकेंगे।'
राजकुमार वरुण हँस पड़ा। बोला, ' अली! बड़े डरपोक हो तुम! यहाँ क्या खतरा हो सकता है? देखते नहीं,कितना हरा-भरा सुंदर बाग है!'
वजीर के लड़के अली ने कहा, 'राजकुमार!आप मानें न मानें, मुझे तो लग रहा है कि यहाँ कोई भेद छिपा है।'
राजकुमार वरुण ने उसकी एक न सुनी और अपने घोड़े को फाटक के अंदर बढ़ा दिया। बेचारा वजीर का लड़का अली भी उसके पीछे-पीछे बाग में घुस गया। ज्यों ही वे अंदर पहुँचे कि बाग का फाटक अपने आप बंद हो गया। अब राजकुमार वरुण और वजीर के लड़के अली के काटो तो खून नहीं। यह क्या हो गया?
वजीर के लड़के अली ने राजकुमार वरुण से कहा, ' कुमार! मैंने आपसे कहा था न कि यहाँ ठहरना मुनासिब नहीं? पर आप नहीं माने। उसका नतीजा देख लिया!'
राजकुमार वरुण ने कहा, ' जो हुआ सो हुआ. मित्र मुझे तुम्हारी सलाह मान लेनी चाहिए थी. चलो, वह सब छोड़ो! अब यह सोचो कि अब हम क्या करें?'
वजीर का लड़का अली बोला, 'अब तो एक ही रास्ता है कि हम घोड़ों को यहीं पेड़ों से बाँध कर छुपा दें और किसी घने पेड़ के ऊपर चढ़ कर छुप कर बैठ जाएँ। देखें, यहाँ क्या होता है।'
दोनों ने यही किया। घोड़े क छुपा कर पेड़ से बाँध कर वे एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गए और चुपचाप बैठ गए।
रात हुई और अंधकार फैल गया। सन्नाटा छा गया। राजकुमार वरुण को नींद आने लगी। तभी उन्होंने देखा कि हवा में उड़ता कोई चला आ रहा है। दोनों काँप उठे। हवा का वेग रुकते ही वह आकृति नीचे उतरी।उसकी शक्ल देखते ही दोनों को लगा कि वे पेड़ से नीचे गिर पड़ेंगे। वह एक परी थी।
उसने नीचे खड़े हो कर अपने इर्द-गिर्द देखा। तभी इधर-उधर से कई परियाँ आ गईं। उनके हाथों में पानी से भरे बर्तन थे। उन्होंने वहाँ छिड़काव किया। वह पानी नहीं, गुलाब जल था। उसकी खुशबू से सारा बाग महक उठा।
अब तो उन दोनों की नींद उड़ गई और वे आँखें गड़ा कर देखने लगे कि आगे वे क्या करती हैं।
हवा में उड़ती एक और परी आ रही थी,
उसी समय कुछ परियाँ और आ गईं। उनके हाथों में कीमती कालीन थे। देखते-देखते उन्होंने वे कालीन बिछा दिए। फिर जाने क्या किया कि वह सारा मैदान रोशनी से जगमगा उठा।
अब तो इन दोनों के प्राण मुँह को आ गए। उस रोशनी में कोई भी उन्हें देख सकता था। जगमगाहट में उन्हें दिखाई दिया कि एक ओर से दूध जैसे फव्वारे चलने लगे हैं। पेड़ों की हरियाली अब बड़ी ही मोहक लगने लगी।
जब वे दोनों असमंजस में डूबे उस दृश्यावली को देख रहे थे, आसमान से कुछ परियाँ एक रत्न-जड़ित सिंहासन ले कर उतरीं और उन्होंने उस सिंहासन को एक बहुत ही कीमती कालीन पर रख दिया। सारी परियाँ मिल कर एक पंक्ति में खड़ी हो गईं। राजकुमार वरुण और वजीर के लड़के अली ने अपनी आँखें मलीं। कहीं वो सपना तो नहीं देख रहे थे!
जारी रहेगी